चौराहों पर अपराधियों के पोस्टर: सुरक्षा या मानवाधिकारों का हनन..?
चौराहों पर अपराधियों के पोस्टर: सुरक्षा या मानवाधिकारों का हनन..?
पुलिस ने जनहित में अपराधियों के फोटो किए सार्वजनिक, पर उठने लगे सवाल — क्या यह विधिक रूप से उचित कदम है?
आईरा न्यूज़ नेटवर्क | संदीप सिंह |ब्यूरो रिपोर्ट|
मुरादाबाद– शहर के मुख्य चौराहों पर पुलिस द्वारा लगाए गए पोस्टर इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं।
इन पोस्टरों पर लूट, छिनैती और महिलाओं से जुड़े अपराधों के आरोपितों की तस्वीरें, नाम और पते के साथ “जनहित में चेतावनी” लिखी गई है।
जहाँ एक ओर प्रशासन का कहना है कि यह कदम जनता को जागरूक करने और महिला सुरक्षा को लेकर सतर्कता बढ़ाने के लिए उठाया गया है, वहीं दूसरी ओर कानूनी विशेषज्ञ इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बता रहे हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
कानून के अनुसार किसी व्यक्ति को तभी “अपराधी” कहा जा सकता है जब अदालत उसे दोषी ठहरा दे।
कई मामलों में अदालतों ने स्पष्ट किया है कि पुलिस द्वारा अभियुक्तों की पहचान सार्वजनिक करना “न्यायपूर्वक सुनवाई के अधिकार” (Right to Fair Trial) का हनन हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने State of Maharashtra vs Rajendra J. Gandhi (1997) के मामले में कहा था कि
“किसी अभियुक्त को न्यायिक प्रक्रिया से पहले सार्वजनिक रूप से अपराधी बताना न्याय में हस्तक्षेप है।”
पुलिस का तर्क है कि यह कदम “जनहित विशेष अभियान” के तहत उठाया गया है, ताकि लोग सतर्क रहें और अपराधियों से दूरी बनाए रखें।
अधिकारियों के अनुसार, महिला सुरक्षा के दृष्टिकोण से ऐसे पोस्टर लगाने से जनता में जागरूकता बढ़ती है और अपराधियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनता है।
वर्ल्ड एक्रेडिटेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स के राष्ट्रीय जनरल सेक्रेटरी डॉ तारिक़ ज़की व मानवाधिकार कार्यकर्ता और विधि विशेषज्ञ एडवोकेट हरि ओम सिंह का कहना है कि
“यदि अभियुक्त का मामला अभी अदालत में लंबित है, तो उसकी तस्वीर लगाना न केवल असंवैधानिक है बल्कि यह उसके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी गहरा प्रभाव डालता है।”
वे मानते हैं कि न्याय की प्रक्रिया पूरी होने के बाद, यदि व्यक्ति दोषी सिद्ध हो जाता है, तब ऐसे पोस्टर जनहित में लगाए जा सकते हैं।
यह पूरा मुद्दा “जनसुरक्षा” और “निजता के अधिकार” के बीच संतुलन का है।
एक ओर जनता को अपराधियों से सतर्क रहना चाहिए, पर दूसरी ओर यह सुनिश्चित करना भी उतना ही आवश्यक है कि कोई निर्दोष व्यक्ति सामाजिक रूप से कलंकित न हो जाए।
वही वरिष्ठ पत्रकार जरीस मालिक का कहना है कि जनहित में सुरक्षा अभियान प्रशंसनीय है, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया से पहले आरोपितों को सार्वजनिक रूप से अपराधी घोषित करना मानवाधिकारों के विरुद्ध है।
आईरा इंटरनेशनल रिपोर्टर्स एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष शाहरुख हुसैन का कहना है कि कानून और संवैधानिक मर्यादाओं के दायरे में रहकर ही जनसुरक्षा के ऐसे कदम अधिक प्रभावी और न्यायसंगत हो सकते हैं।
आईरा न्यूज़ नेटवर्क
“सच के साथ, समाज के हित में”





