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झीलों की नगरी नैनीताल का 181 वां जन्मदिन, जानें कब वजूद में आया था यह खुबसूरत शहर

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उत्तराखंड नैनीताल आईरा न्यूज़ नेटवर्क राजेश सिंघल

18 नवंबर झीलों की नगरी नैनीताल का 181 वां जन्मदिन, जानें कब वजूद में आया था यह खुबसूरत शहर

नैनीताल। सरोवर नगरी नैनीताल का 181 वां जन्मदिन है। 18 नवम्बर की तारीख सरोवर नगरी के लिए बेहद खास हैं। इसी दिन नैनीताल दुनिया के सामने आया था।

1841 में आया अस्तित्व में
नैनीताल का जन्म 18 नवम्बर 1841 को पी बैरन नाम के व्यापारी ने किया था‌। इसी दिन पी बैरन ने नैनीताल का दस्तावेजीकरण किया था। हालांकि, उस समय कुमाऊं कमिश्नर ट्रेल 20 साल पहले ही नैनीताल आ चुके थे। लेकिन, नैनीताल की आबोहवा और झील की नैसर्गिक सौंदर्य बना रहे, इसलिए ट्रेल ने इसका प्रचार नही किया। इतिहासकारों के अनुसार सबसे पहले व्यापारी पी. बैरन ने नैनीताल को देखा और इसके बारे में दूसरे लोगों को बताया. बाद में धीरे-धीरे नैनीताल अपनी खूबसूरती से देश-दुनिया में प्रसिद्ध होता चला गया। इतिहासकार प्रो. अजय रावत बताते हैं कि पी. बैरन को पहाड़ में घूमने का काफी शौक था। बदरीनाथ की यात्रा करने के बाद जब वह कुमाऊं की ओर आए तो रास्ते में उन्हें एक स्थानीय व्यक्ति से शेर का डांडा क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। उस स्थानीय व्यक्ति ने बैरन को शेर का डांडा नाम की पहाड़ी के पीछे स्थित झील के बारे में बताया। जिसके बाद गांव के लोगों की मदद से बैरन शेर का डांडा की पहाड़ी को पार कर झील तक पहुंचे. यहां से लौटने के बाद बैरन ने अपने यात्रा वृत्तांत और अखबारों में इस झील के बारे में जानकारियां छपवाईं। कोलकाता के ‘इंगलिश मैन’ नामक अखबार में नवंबर 1841 में सबसे पहले नैनीताल के ताल की खोज संबंधी खबर छपी थी। इसके बाद आगरा अखबार में भी इस झील के बारे में पूरी जानकारी दी गई थी।

सैलानियों में नैनीताल के जन्मदिन को लेकर रहता है काफी उत्साह
जब पी बैरन जब इंग्लैंड वापस लौटे तो, उन्होंने अपने यात्रा वृतांत कई समाचार पत्रों में प्रकाशित कराए और नैनीताल की चर्चा पूरी दुनिया में आ गई। नैनीताल को अंग्रेजों ने बेहद खास अंदाज में बसाया है। झील के चारों और करीब 64 नालों को बनाया। शहर का सीवरेज सिस्टम भी आज भी वैसा ही है‌। पर्यटकों के लिए नैनीताल सपनों का शहर है‌। शहर में पर्यटक भी इस दिन को अलग अंदाज में मना की तैयारी कर रहे हैं। दिल्ली से आए पर्यटक नवीन सिंघल ने कहा कि दिल्ली में पूरी तरह प्रदूषण की चपेट में है और जब वो नैनीताल आते हैं तो, उन्हें स्वर्ग जैसा लगता है। वैसे भी उत्तराखंड को देवभूमि कहा गया है और हकीकत में देव भूमि है उत्तराखंड।

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