नई दिल्ली

मुख्यमंत्री बनने को जूनियर खड़गे बेताब, सीनियर खड़गे का भी प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब

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मुख्यमंत्री बनने को जूनियर खड़गे बेताब, सीनियर खड़गे का भी प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब

  • मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में बुलंद होने लगा परिवारवाद का झंडा
    रितेश सिन्हा। वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक।
    कांग्रेस में परिवारवाद का झंडा एक बार फिर से से बुलंद हो चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मुख्यमंत्री बनने के लिए पिछले 20 सालों से बेताब रहे। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामित अशोक गहलोत का मुख्यमंत्री पद न छोड़ पाने का मोह परिस्थितिवश मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष बनवा दिया। खड़गे के छाती पर कांग्रेस अध्यक्ष बिल्ला लटकते ही परिवारवाद की राजनीति ने उनको बुरी तरह से जकड़ लिया। ’मैं और मेरा बेटा’ की थीम पर उनकी राजनीति का असली रंग अब सामने आने लगा है। खड़गे जूनियर प्रियांक प्रदेश में मंत्री व प्रदेश कांग्रेस संचार के प्रमुख पद पर काबिज हैं। अब मुख्यमंत्री बनने की अपनी इच्छा को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने लगे हैं।
    कर्नाटक में सिद्धरमैया सरकार के मंत्रीमंडल में मंत्री बनने के लिए एक प्राथमिकता प्रियांक की स्वीकृति जरूरी थी। सीडब्लूसी में बतौर महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला को ऐन चुनाव के वक्त मध्यप्रदेश प्रभारी बनाने में भी उनकी महती भूमिका रही। मध्य प्रदेश की राजनीति में पूर्व प्रभारी जयप्रकाश अग्रवाल को प्रियांक के सिफारिशों को नजरंदाज करने की सजा मिल चुकी है। 85 से अधिक जंबो जेट की कांग्रेस कार्यसमिति से भी जयप्रकाश बाहर हैं। वहीं पवन बंसल का भी कद घटाने में खड़गे परिवार ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
    प्रियांक ने बयान दिया है कि आलाकमान अगर मुझसे मुख्यमंत्री बनने के लिए कहेंगे तो मैं हां कहूंगा। केपीसीसी के कम्युनिकेशन विभाग के चेयरमैन प्रियांक यहीं नहीं रूके, उन्होंने कहा कि हर कोई मुख्यमंत्री बनना चाहता है, इसके कोई बुराई भी नहीं, लेकिन पार्टी आलाकमान को निर्णय लेना है, उनका निर्णय मुझे हर हाल में स्वीकार्य है। प्रियांक के बयान पर गौर करें तो जिस पार्टी आलाकमान की उन्होंने बात कही है, वे सीनियर खड़गे और पिता आज पार्टी के आलाकमान हैं। इतिहास है कि 6 दशकों से सक्रिय राजनीति करने वाले मल्लिकार्जुन लगभग अपने सपनों में दो दशकों से ’सीएम इन वेटिंग’ हैं, पर अब वे दलित और पिछड़े के नाम पर खुद को सीधे प्रधानमंत्री पद मजबूत दावेदार मान बैठे हैं। कांग्रेस में उनके वर्चस्व को कायम रखने के लिए राजनीतिक सलाहकार के तौर गुरदीप सिंह सप्पल, सांसद नासिर, कामेश्वर पटेल सरीखे जॉनी-टॉनी के नाम से मशहूर टीम सहित एक दर्जन लोगों को लाभार्थी बनाया हुआ है। ऐसे नेताओं ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
    कांग्रेस वर्किंग कमिटी में भी अध्यक्ष-पुत्र प्रियांक का दबदबा साफ दिखाई देता है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने राजनीतिक विरोधियों को अपने पद की अकड़ और पकड़ से जिस प्रकार ठिकाने लगाया है, उसकी मिसाल देखते ही बनती है। बड़े नेताओं की ही बात करें तो सुशील कुमार शिंदे, पवन कुमार बंसल, जयप्रकाश अग्रवाल, अशोक गहलोत के बाद मध्य प्रदेश में कमलनाथ, दिग्विजय को झटका देने के लिए राजनीतिक गलियारों में ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने का शगूफा छोड़ दिया गया है। बड़बोले दिग्गी की शिट्टी-पिट्टी गुम है, वहीं कमलनाथ चुनाव परिणाम आने तक किसी भी विवाद में आने से बचना चाहते हैं। कांग्रेस के केंद्रीय कार्यालय से मिल रही सूचनाओं पर गौर करें तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, सपा प्रमुख अखिलेश यादव का गठबंधन में होने के बाद भी मध्य प्रदेश में उम्मीदवार उतारना, एक ही दांव में दोनों तो चित करना है।
    सीताराम केसरी के पुराने शागिर्द रहे मल्लिकार्जुन खड़गे उन्हीं की पद-चिन्हों पर चलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद खींचने में पहले कामयाब रहे और अब प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब भी देखने लगे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक केसरी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता और नेताओं में एक थे। अध्यक्ष बनने के बाद वे अपने असली रंग में आ गए थे। खड़गे भी अपने उन्हीं उस्ताद के दिखाए रास्ते पर कांग्रेस में आगे बढ़ रहे हैं। कांग्रेस में पवन बंसल के साथ हुए दुर्व्यवहार के बाद से गांधी परिवार के वफादारों में बड़ी बेचैनी है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद गठबंधन में कांग्रेस लगभग 60 प्रतिशत यानी 300 से अधिक सीटें गठबंधन के नेताओं को देगी। इसे सीनियर खड़गे अमलीजामा पहनाने की फिराक में हैं, ताकि कांग्रेस 100-125 के बीच आकर रूक जाए और बतौर कांग्रेस अध्यक्ष वे ’केसरी प्लान’ को एक बार फिर से कांग्रेस में क्रियान्वित करने में उनके सिपाहसलार जुटे हैं।
    खड़गे के ये सिपाहसलार गठबंधन के दलों को साधते हुए उनको प्रधानमंत्री बनाने का बड़ा खेल कर सकें। मगर कांग्रेसी भूले नहीं हैं कि सीताराम केसरी के ऐसी ही प्लान को ऐन टाइम प्रणब दादा ने पंक्चर कर दिया था। केसरी के दूसरे शागिर्द तारिक अनवर भी लगभग दो दशकों के बाद कांग्रेस में वापसी करते हुए लालू की सिफारिशों से खड़गे की कमिटी में कुछ बड़ा खींचने के फेर में दिखते हैं। फिलहाल राहुल विरोधी खेमा खड़गे के दायें-बाएं लटका हुआ है। ऐसे नेताओं में आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक, मोहन प्रकाश, अखिलेश प्रसाद सिंह, शक्ति सिंह गोहिल, दीपक बावरिया जैसे लोगों ने मजबूत घेराबंदी की है। इनके बूते खड़गे परिवार पीएम-सीएम का सपना साकार करने में कितने कामयाब होता है, ये समय ही बताएगा।
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