खाद्य पदार्थों का खेत से थाली तक हो सुरक्षित सफ़र-✍ डॉ. शैलेश शुक्ला
विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस विशेष
खाद्य पदार्थों का खेत से थाली तक हो सुरक्षित सफ़र
✍ डॉ. शैलेश शुक्ला
वरिष्ठ लेखक, पत्रकार, साहित्यकार एवं वैश्विक समूह संपादक, सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह
नई दिल्ली | 7 जून 2025
हर वर्ष 7 जून को मनाया जाने वाला विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस न केवल उपभोक्ताओं को सुरक्षित भोजन के प्रति जागरूक करने का अवसर देता है, बल्कि यह वैश्विक खाद्य तंत्र की गुणवत्ता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता की गहराई से समीक्षा का दिन भी बन गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, असुरक्षित खाद्य पदार्थों के कारण हर वर्ष लगभग 42 लाख मौतें होती हैं, जिनमें बड़ी संख्या बच्चों की होती है। ऐसे में यह दिन केवल प्रतीकात्मक आयोजन तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि यह वैश्विक एवं स्थानीय नीति निर्माण का दिन बनना चाहिए।
खाद्य सुरक्षा: स्वाद से अधिक, स्वास्थ्य का सवाल
बाजारों में उपलब्ध पैक्ड, प्रोसेस्ड और स्ट्रीट फूड में कीटनाशकों, रसायनों, प्रिज़र्वेटिव्स और मिलावट की मात्रा दिन-ब-दिन बढ़ रही है। फलों पर वैक्सिंग, दूध में डिटर्जेंट, मावा में सिंथेटिक केमिकल्स और तेल में खतरनाक मिलावटें आम होती जा रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है — क्या उपभोक्ता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि वह जो खा रहा है, वह कितना सुरक्षित है?
भारत में खाद्य सुरक्षा की ज़मीनी हकीकत
भले ही FSSAI जैसी संस्थाएं ‘ईट राइट इंडिया’ जैसे अभियानों के जरिए जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रही हैं, लेकिन गाँवों, कस्बों और यहां तक कि बड़े शहरों में भी खाद्य निरीक्षण प्रणाली अभी भी बेहद कमजोर है। अनेक होटल, ढाबे व फूड आउटलेट्स बिना लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो फूड टेस्टिंग लैब्स तक की अनुपलब्धता एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
स्कूल, अस्पताल और आंगनवाड़ी: सबसे संवेदनशील बिंदु
मिड डे मील, आंगनवाड़ी भोजन, अस्पतालों और वृद्धाश्रमों में परोसा गया भोजन यदि दूषित या अस्वास्थ्यकर हो, तो यह लापरवाही नहीं बल्कि आपराधिक कृत्य है। ऐसे संस्थानों में औचक निरीक्षण और कड़ी निगरानी आज की आवश्यकता है।
खाद्य श्रृंखला की हर कड़ी हो पारदर्शी
खाद्य सुरक्षा केवल “खाने के समय की सफाई” भर नहीं है। यह एक समग्र प्रक्रिया है, जिसमें कृषि, संग्रहण, ट्रांसपोर्ट, प्रसंस्करण, पैकेजिंग और बिक्री तक हर स्तर पर गुणवत्ता की निगरानी होनी चाहिए।
QR कोड आधारित ट्रेसिंग, डिजिटल ट्रैकिंग, और उपभोक्ता फीडबैक को अब अनिवार्य रूप से लागू करने की ज़रूरत है।
जलवायु परिवर्तन से भी जुड़ा है खाद्य सुरक्षा का मसला
खाद्य सुरक्षा का दायरा अब केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है। जलवायु परिवर्तन, रासायनिक खेती, जल संकट और जैव विविधता में क्षरण ने खाद्य गुणवत्ता को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। इस संकट से निपटने के लिए खाद्य मंत्रालय के साथ-साथ पर्यावरण, जल संसाधन, शहरी नियोजन और कृषि विभागों की साझा योजना अत्यावश्यक हो गई है।
2025 की थीम: “Safe Food Now for a Healthy Tomorrow”
इस वर्ष की थीम स्पष्ट संकेत देती है कि यदि आज हम सुरक्षित भोजन नहीं दे पाए, तो आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ेगा।
निष्कर्ष: यह अधिकार सभी का है
खाद्य सुरक्षा केवल ‘क्या खा रहे हैं’ तक सीमित नहीं, बल्कि यह जानने का भी अधिकार है कि कहाँ, कैसे और किस प्रक्रिया से वह खाना हमारे थाल तक पहुँचा है। यह एक सार्वभौमिक मानवाधिकार है, और इसे समाज के हर वर्ग तक सुनिश्चित करना सरकार और समाज दोनों की साझी ज़िम्मेदारी है।
✍ लेखक परिचय:
डॉ. शैलेश शुक्ला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त वरिष्ठ लेखक, पत्रकार एवं भाषाकर्मी हैं। वे ‘सृजन अमेरिका’, ‘सृजन ऑस्ट्रेलिया’, ‘सृजन यूरोप’ सहित कई अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रिकाओं के वैश्विक प्रधान संपादक हैं। उन्हें भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा ‘राजभाषा गौरव पुरस्कार (2019-20)’ एवं दिल्ली हिंदी अकादमी का ‘नवोदित लेखक पुरस्कार (2004)’ समेत अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया है।
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